वाह री रेखा गुप्ता सरकार
" आलोक गौड़ "
" कबीरा खड़ा बाजार में मांगे सबकी खैर,
ना काहू से अपनी दोस्ती, ना काहू से बैर। "
नई दिल्ली। ऐसा लगता है कि दिल्ली में 27 साल बाद सत्ता में वापसी करने वाली भारतीय जनता पार्टी और उसकी मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की जीत की खुमारी अभी खत्म नहीं हुई है। यह ही वजह है कि मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता और उनकी मंत्रिपरिषद के सदस्य पहले तो अपनी सरकार के सौ दिन पूरे करने का जश्न मनाने में जुटे रहे। अब वह केंद्र में मोदी सरकार के 11 साल के शासन की उपलब्धियां जन जन तक पहुंचने के उद्देश से आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रम में व्यस्त हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री और उनकी सरकार के पास जनता के लिए वक्त ही कहां है।
एक ओर रेखा गुप्ता सरकार जीत का जश्न मनाने में मग्न है, तो दूसरी तरह विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी के लंबे चौड़े वादों पर भरोसा कर उसका समर्थन कर उसे सत्ता सौंपने वाले लोग हर तरह की समस्याओं से जूझ रहें।
इस वक्त या यह कहें कि हमेशा से बनी रहने वाली समस्या बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ा कर उनका भविष्य संवारने की है। सरकारी दावों के बावजूद हकीक़त तो यही एक ओर तो न तो सरकार अपने अधीनस्थ स्कूलों का स्तर सुधारने में पूरी तरह से असफल रही बल्कि निजी स्कूल (पब्लिक स्कूल) स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाने में भी विफल रहीं। जिसकी वजह से लोग अपना पेट काटकर अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाने पर मजबूर हुए। उनकी इसी स्थिति और मजबूरी दोनों का फायदा उठाते हुए स्कूल संचालकों ने उन्हें अपने सामने घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया।
विधानसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव के दौरान निजी स्कूलों की मनमानी से निजात दिलाने का वादा किया था। लेकिन उसकी सत्ता आने के बाद हुआ इसके एकदम उलट। एक नामी गिरामी स्कूल ने न केवल मनमाने तरीके से फीस व अन्य शुल्क बड़ा दिए बल्कि इन्हें जमा करने में असमर्थ छात्रों को बंधक भी बना लिया। जब इस मामले ने ज्यादा तूल पकड़ लिया तो रेखा सरकार ने आनन फानन में दिल्ली स्कूल फीस ( फीस निर्धारण पारदर्शिता नियमन) अध्यादेश जारी कर दिया। दिलचस्प बात तो यह है कि इस तरह का अध्यादेश जारी करने से पहले रेखा गुप्ता सरकार ने न तो इस बारे में दिल्ली के अभिवावकों को न ही विपक्ष को विश्वास में लेना जरुरी समझा। यह ही वजह है कि न केवल दिल्ली सरकार के पूर्व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया और दिल्ली विधानसभा में विपक्ष की नेता आतिशी ने इसका पुरजोर विरोध किया है बल्कि इसे निजी शक्लों के हित में व आम आदमी का विरोधी करार दिया है।
यूनाइटेड पेरेंट्स वॉयस ने भी रेखा गुप्ता सरकार की मंशा पर सवाल उठाया है । इस संगठन का कहना है कि सरकार यदि अभिभावकों को राहत देने के प्रति गंभारी थी तो , उसे अध्यादेश जारी करने से पहले अभिभावकों को विश्वास में लेना चाहिए थे।
इस तरह तरह का अध्यादेश जारी करने को लेकर दिल्ली के पूर्व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया और विधानसभा में विपक्ष की नेता आतिशी ने दिल्ली सरकार पर जोरदार तरीके से हमला बोला है। उनका कहना है कि आम आदमी पार्टी की सरकार ने न केवल निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाई थी बल्कि सरकारी स्कूलों का स्तर सुधार लोगों को उनमें अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रेरित भी किया था। उनका कहना है कि रेखा सरकार की मंशा सरकारी स्कूलों को शिक्षा का मंदिर नहीं बल्कि शिक्षा माफिया का अड्डा बनाने की है। उनका यह भी कहना है कि रेखा सरकार अगर वास्तव में निजी स्कूलों की नाक में नकेल कसना चाहती तो उसे इस संबध में न केवल एक मज़बूत विधेयक विधानसभा में पेश करना चाहिए था बल्कि उसमें विपक्ष की ओर से दिए गए सुझाव व आपत्तियों का ध्यान भी रखना चाहिए था।
दिल्ली सरकार के भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक रेखा सरकार खासकर उसके शिक्षा मंत्री आशीष सूद निजी स्कूलों के बारे में कानून बनाने के लिए मई महीने से ही प्रयास कर रहे थे। उन्होंने 4 मई को केबिनेट की। बैठक में दिल्ली स्कूल फीस (निर्धारण पारदर्शिता नियमन) विधेयक का प्रारूप प्रस्तुत किया था। जिस पर केबिनेट ने अपनी सहमति की मुहर लगाने के साथ ही यह फैसला भी लिया था कि इसे पारित करने के लिए 13 व 14 मई को विधानसभा का विशेष सत्र भी बुलाया जाएगा। इसी बीच निजी स्कूलों के संचालकों के प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के साथ मुलाकात की। जिसके बाद न केवल विधानसभा का सत्र बुलाने का निर्णय टाल दिया गया बल्कि विधेयक के स्थान पर अध्यादेश जारी कर उसे मंजूरी के लिए उपराज्यपाल के पास भेज दिया गया। यह कोई छुपी बात नहीं है कि दिल्ली के अधिकांश निजी स्कूल राजनेताओं (जिनमें भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की संख्या सर्वाधिक है) के स्वामित्व में या फिर उनके संचालक मंडल पर उनके समर्थकों का कब्जा है। ऐसी स्थित में भला वह दिल्ली सरकार को निजी स्कूलों के हित के खिलाफ किसी भी प्रकार का कोई कानून कैसे बनाने दे सकते थे। रेखा सरकार के पास भी शक्तिशाली निजी स्कूलों की लाबी के सामने झुक जाने के सिवाय दूसरा कोई रास्ता नहीं था। इसलिए उसने निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के अविभावकों के साथ ही विपक्ष की आंखों में धूल झोंकने के उद्देश्य से अध्यादेश जारी कर दिया है।
इसी प्रकार दिल्ली में सत्ता परिवर्तन सेहोने के साथ ही झुग्गी बस्ती व अनधिकृत कालोनियों में तोडफ़ोड़ की कार्रवाई शुरू हो गई है। दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) व अन्य निकायों की ओर से अनधिकृत कालोनियों में सैकड़ों मकान गिराने के नोटिस चस्पां कर दिए गए हैं। इस बारे में मुख्यमंत्री ने यह कह कर अपने हाथ खड़े कर दिए हैं कि यह कार्रवाई अदालती आदेश पर की जा रही है। इसमें वह किसी भी प्रकार की कोई दखलंदाजी नहीं कर सकती। सवाल यह उठता है कि जब मुख्यमंत्री तोडफ़ोड़ की कार्रवाई को रुकवाने के लिए कुछ भी नहीं कर सकती हैं। तो उन्होंने बार यह घोषणा क्यों की है दिल्ली में तो एक भी झुग्गी तोड़ी जाएगी और न ही किसी मकान को गिराया जाएगा। जाहिर सी बात है कि यह जानते हुए भी कि भूमि और कानून व्यवस्था दोनों ही उनकी सरकार के अधीन नहीं आते। बावजूद इसके उन्होंने इस बारे में गलतब्यानी की है।