हार दर हार से भी कोई सबक नहीं सीखा कांग्रेस ने
" आलोक गौड़ "
नई दिल्ली। उम्र गुजार दी सारी दूसरों के ऐब निकालते हुए, इतनी कोशिश खुद को तराशने की करते तो खुदा हो जाते।
दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने रेखा गुप्ता सरकार के सौ दी के कार्यकाल पर तीखी टिप्पणी करते हुए उनके 10 महापाप गिनवाए हैं। काश कि ऊपर लिखे शेर की नसीहत को मानते हुए देवेंद्र यादव अपने गिरेबान में झांककर देखते और दिल्ली में अपनी पार्टी की दुर्दशा के कारण जान कर उन्हें दूर करने का प्रयास करते तो हो सकता था कि कांग्रेस अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने का रास्ता तलाश कर सकती थी। लेकिन देवेंद्र यादव को शायद दूसरों की कमियां तलाश करना ही ज्यादा सुविधाजनक लगा। वैसे भी एक अर्से से दिल्ली में कांग्रेस ने सड़कों पर उतार कर संघर्ष करना छोड़ दिया है। इसी वजह से कांग्रेस की यह हालत हुई है।
दिल्ली में लोकसभा से लेकर विधानसभा व नगर निगम तक के चुनाव में कांग्रेस लगातार हार का सामना कर रही है। बावजूद इसके प्रदेश स्तर के नेताओं का रवैया नहीं बदला। जिसका खामियाजा कांग्रेस पार्टी को हर चुनाव में पराजय के रूप में भुगतना पड़ रहा है।
प्रदेश कांग्रेस के लिए इससे ज्यादा शर्मनाक स्थिति और क्या होगी कि जिस पार्टी की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने लगातार तीन बार विधानसभा का चुनाव जीत कर दिल्ली में एक नया इतिहास रचा था। उसी पार्टी का विधानसभा के पिछले दो चुनाव में खाता तक नहीं खुला है। दिल्ली नगर निगम के चुनाव में वह तीसरे नंबर पर रही थी।
चुनाव दर चुनाव में मिली हार से सबक लेकर अगर प्रदेश नेतृत्व ने संगठन की कमजोरी दूर करने के साथ ही पार्टी के हताश व निराश कार्यकर्ताओं में जोश भरने की कोशिश की होती तो आज स्थिति दूसरी हो सकती थी। लेकिन नेतृत्व की कमजोरी कहें या दूरदर्शिता का अभाव। उसने आज तक इस दिशा में कोई प्रयास नहीं किए।
यहां पर इस बात का जिक्र करना भी असंगत नहीं होगा कि भारतीय जनता पार्टी दिल्ली की सता से 27 साल दूर रही और इस दौरान उसने प्रदेश स्तर के नेतृत्व को लेकर कई तरह के प्रयोग किए। मगर सफलता उससे दूर ही रही। लगभग दो साल पहले उसने दिल्ली में पार्टी की बागडोर वीरेंद्र सचदेवा के हाथ में सौंपने का फैसला लेकर सबको चौंका दिया। लेकिन आगे बढ़ कर नेतृत्व कर और कार्यकर्ताओं में उत्साह पैदा कर उन्होंने संगठन में नई जान फूंक दी।
वीरेन्द्र सचदेवा ने न केवल आम आदमी पार्टी की सरकार को कठघरे में खड़ा करने के लिए हर आंदोलन में आगे बढ़ कर नेतृत्व करने के साथ ही कई बार अपने प्राणों को भी संकट में डाल दिया। यमुना नदी में जल प्रदूषण के खतरनाक स्तर को साबित करने के लिए वह खुद ही यमुना में कूद गए। जिसका खामियाजा उन्हें त्वचा रोग का शिकार होकर भुगतना पड़ा। बैरियर तोड़ने के दौरान उन्हें अपने पैर की एक उंगली से हाथ पड़ा। पीठ पर पड़ी लाठी का दर्द उन्हें आज भी साल रहा है।
इतना ही नहीं सता में होने के बावजूद उन्होंने जिला अध्यक्ष के चुनाव करवा कर नए नेतृत्व के हाथ में कमान सौंप दी है। इसके विपरीत प्रदेश कांग्रेस में आज भी उन्हीं पुराने चेहरों पर दांव लगाने के साथ ही वातानुकूलित कमरों में बैठ कर राजनीति की जा रही है। इतना ही नहीं प्रदेश अध्यक्ष गुटबाजी को खत्म करने की दिशा में कोई भी कदम उठाने में नाकाम रहें। ऐसे में यह उम्मीद करना पूरी तरह से बेमानी होगा कि कांग्रेस दिल्ली में पुनः अपने पैरों पर खड़ी हो पाएगी