यमुना की इस दशा के लिए हम सब जिम्मेदार हैं
" आलोक गौड़ "
नई दिल्ली। बर्बाद गुलिस्तां करने को,बस एक उल्लू ही काफी था, हर शाख पर उल्लू बैठा है, अंजाम गुलिस्तां क्या होगा। यह शेर दिल्ली में यमुना नदी की वर्तमान स्थिति पर पूरी तरह से मौंजू है।
पिछले 32 सालों के दौरान प्रदूषित यमुना नदी का पानी निर्मल करने के लिए दिल्ली की सरकार ने न केवल तीन - एक्शन प्लान तो बनाए ही उन पर आठ हजार करोड़ रुपए से ज्यादा भी खर्च कर दिए। बावजूद इसके हर गुजरते दिन के साथ यमुना की स्थिति और भी बिगड़ती चली गई। आज यमुना सरकार की गलत नीतियों और सरकारी भ्रष्टाचार के कारण मरणासन्न स्थिति में वेंटिलेटर पर अंतिम सांसे ले रही है। उसकी इस स्थिति से यह बात भी साफ हो जाती है कि सरकार ने उसके स्वास्थ्य की चिंता करने के साथ ही उपचार पर पैसे तो खर्च किए। लेकिन उसके रोग का कारण जानने की कोशिश नहीं की। जिसकी वजह से। यमुना जीवित तो रही। मगर पूरी तरह से स्वस्थ होकर दिल्लीवासियों के लिए एकबार फिर से संभावनाएं काफी कम होती चली गईं।
विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर एक गैर सरकारी संगठन की ओर से दिल्ली में यमुना नदी के बारे में जारी रिपोर्ट में दिए गए आंकड़े न केवल चौंकाने वाले हैं बल्कि इस बात की पुष्टि करते हैं कि उसके उपचार की दिशा अभी तक सही नहीं थी।
अब यदि यमुना नदी के संबंध में दिए जा रहे आंकड़ों और उसकी वास्तविकता पर एक नजर डालेंगे तो आपको खुद नजर आएगा कि उसे यहां तक पहुंचाने के लिए जिम्मेदार कौन है।
यमुना में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए इसका अस्तित्व बचाने के? लिए आज से 37 साल पहले जल प्रदूषण अधिनियम बना कर उसे लागू कर दिया था। उसे लागू करने के प्रति कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। जिसकी वजह से यह अधिनियम टाएं टांय फिस्स ही कर रह गया।
साल 1993 में दिल्ली में निर्वाचित सरकार बनने और मैली यमुना को निर्मल बनाने के लिए कामन काज संस्था के अध्यक्ष एस डी शौरी की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करने के बाद तत्कालीन दिल्ली सरकार 1993 में पहला यमुना एक्शन प्लान बनाने व उसे लागू करने पर मजबूर हो गई। यह प्लान साल 2003 तक जारी रहा। इसके बाद दिल्ली में निज़ाम बदल गया। लेकिन यमुना एक्शन प्लान बनाने और बजट में उसके लिए पर्याप्त धनराशि का प्रावधान रहा। इसके खत्म होने के बाद तीसरा प्लान बनाया गया। इसकी समाप्ति की अवधि 2008 तक थी लेकिन तब तक इस प्रभावी ढंग से लागू न कर पाने और अपेक्षित परिणाम न हासिल कर पाने को देखते हुए इसकी अवधि 2013 ta बढ़ा दी गई। तीसरा यमुना एक्शन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नमामि गंगे के तहत शुरु हुआ। यह अभी चल रहा है। जिसके तहत यमुना नदी में केवल शोधित पानी छोड़े जाने की योजना बनाई गई है।
आपको जानकर गहरा आश्चर्य होगा कि दिल्ली से यमुना का केवल दो फीसदी पानी होकर गुजरता है जबकि पूरी यमुना को प्रदूषित करने में उसका योगदान लगभग 80 फीसदी है।
इसकी प्रमुख वजह कि दिल्ली में हर दिन 792 एमजीडी जलमल जनित पानी निकलता है। जिसमें से दिल्ली जल बोर्ड के सीवर शोधन संयंत्र केवल 632 एमजीडी को ही शोधित करने की क्षमता रखते हैं। जहां एक ओर प्रतिदिन 160 एमजीडी जलमल जनित पानी सीधे यमुना नदी में छोड़ा जा रहा है। वहीं जलमल मिश्रित पानी का शोधन करने का काम दिल्ली सरकार के जल बोर्ड के जो 35 संयंत्र काम कर रहे हैं। उनमें से 22 विश्व संगठन की बात तो दूर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानकों की कसौटी पर भी खरा नहीं उतर रहें हैं। ऐसे में जाहिर सी बात है कि इन संयंत्रों में आंशिक रूप से जलमल मिश्रित पानी शोधित हो पा रहा होगा।
दिल्ली के पहले मास्टर प्लान के मुताबिक, हालांकि इसके सारे अनुमान गलत साबित हो गए थे। दिल्ली में यमुना का क्षेत्रफ़ल केवल 97 वर्ग किलोमीटर हे। इसमें से जिस क्षेत्र में यमुना का जल बहाव है, वह केवल 16 वर्ग किलोमीटर है। यमुना की तलहटी में बसे खादर क्षेत्र का क्षेत्रफ़ल 81 वर्ग किलोमीटर है। हालांकि सही तथ्य तो यह कि दिल्ली में वजीराबाद से लेकर ओखला के 22 किलोमीटर लंबे रास्ते के दौरान यमुना अपने साथ प्रदूषण का 80 फीसदी हिस्सा आगे लेकर बढ़ती है। इसका प्रमुख कारण इसमें गिरने वाले दो प्रमुख नाले नजफगढ़ व शाहदरा है। जिनके जरिए 500 अनधिकृत कालोनी, 600 से ज्यादा झुग्गी बस्ती और 160 गांवों का जलमल मिश्रित पानी सीधे यमुना नदी में पहुंच कर उसके प्रदूषण में इजाफा कर रहा है।
दिल्ली की रेखा सरकार ने यमुना नदी को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए इस साल के बजट में 9 हजार करोड़ रुपए और सीवर व्यवस्था में सुधार के लिए 500 करोड़ रुपए की राशि का प्रावधान किया है। अगर उन्होंने यमुना मैया को पूरी तरह मरने से बचा लिया तो मैया के साथ ही दिल्लीवासी भी उनका आभार मानेंगे। काम मुश्किल आवश्य है लेकिन न मुमकिन नहीं। उन्हें यमुना नदी को बचाने के लिए दर्द राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिचय देने के साथ ही वोट बैंक का मोह त्याग कर यमुना नदी के किनारे हुए प्रकार के अवैध निर्माण को हटाने की कार्रवाई करनी होगी। वैसे भी यमुना नदी के नाम राजनीतिक दलों ने दिल्लीवासियों के साथ काफी छल किया है।